प्रदेश सेब उत्पादक संघ का प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री से मिला
सीएनबीन्यूज़4हिमाचल ब्यूरो
शिमला:सेब उत्पादक संघ हिमाचल प्रदेश का एक प्रतिनिधिमंडल सेब उत्पादक संघ के राज्य अध्यक्ष राकेश सिंघा तथा संजय चौहान की अध्यक्षता मे किसानों के कब्जे वाली जमीन की बेदखली को लेकर मुख्यमंत्री को मिला। इसमें करीब 350 के करीब किसानों ने भाग लिया। सरकार की ओर से इस बैठक में राजस्व, कानून व बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी, शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर, राज्य वित आयोग के अध्यक्ष नंद लाल उपस्थित रहे। सेब उत्पादक संघ से संजय घमटा, जय सिंह जेहटा, कृष्ण ब्रामटा, ललित चौहान, नरिंदर चौहान, अशोक झोहटा, नरेश वर्मा, नरेंद्र चौहान, रोहित, शवन लाल, कुलभूषण रावत, रिंकू, रोशन लाल, किमटा, अश्वनी पांजटा, सुनिल चौहान, अजय दुलटा, नरिंद्र मेहता, काकू राजटा के अतिरिक्त दर्शन ठाकुर, पिंकू , सुनिल चौहान, बंसी लाल दगान आदि ने भाग लिया। प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री को अवगत करवाया कि प्रदेश मे किसानों के कब्जे में जो जमीन है उसको लेकर बेदखली की कार्यवाही आरंभ कर दी गई है ये किसानों के लिए बहुत बड़ी परेशानी है। जिसको लेकर पूरे प्रदेश में लाखों परिवारों के ऊपर रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इसमें अधिकतर गरीब परिवार शामिल है जिन्होने अपने रहने के लिए या तो मकान बनाए हैं या जमीन पर खेती कर अपना तथा अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। इसलिए यदि बेदखली की कार्यवाही जारी रहती है तो लाखों लोगों के सिर से छत तथा उनका रोजी रोटी का साधन छीन लिया जाएगा। वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने किसानों के कब्जे में जमीन के नियमितीकरण के लिए एक नीति का निर्धारण कर जिन लोगों के कब्जे में जमीन है उनके कब्जों को नियमित किया जाएगा। उसके लिए भू राजस्व कानून की धारा 163(A) को जोड़ा गया। इसको लेकर प्रदेश भर में करीब 1, 66,000 आवेदन किए गए। इसके अतिरिक्त जब प्रदेश में जब सेटलमेंट हुआ तब भी लाखों लोगों को अवैध कब्जे के नोटिस थमाए गए थे तथा उन पर कार्यवाही चल रही है। परन्तु उसके पश्चात् आज तक किसी भी सरकार द्वारा इस मुद्दे पर कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए
<span;> इस प्रतिनिधिमंडल ने सरकार से मांग की है कि प्रदेश सरकार आने वाले विधानसभा सत्र में प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजे, जिसमें किसानों के कब्जे वाली जमीन के नियमितीकरण के लिए एक ठोस नीति निर्धारित की जाए तथा इसके लिए केंद्र सरकार से आग्रह किया जाए कि वन संरक्षण कानून, 1980 में उसी तर्ज पर संशोधन किया जाए जैसे कि केन्द्र सरकार ने दिसम्बर, 2023 में बड़े औद्योगिक और कॉरपोरेट घरानों को जंगल में उद्योग लगाने तथा खनन करने के लिए हजारों बीघा जमीन देने का प्रावधान किया गया है। इसमें औद्योगिक उत्पादन के साथ ही साथ कृषि तथा बागवानी को भी शामिल कर भूमिहीन तथा गरीब किसानों को कम से कम 5 बीघा तक भूमि देने का प्रावधान किया जाए। इसके साथ ही मांग की गई कि अभी तक प्रदेश में अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रावधानों के अनुसार अन्य परंपरागत वन निवासी जिसके अंतर्गत प्रदेश की अधिकांश जनता आती है के पक्ष में जमीन देने की कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है। इस पर भी सरकार कार्यवाही कर भूमिहीन तथा गरीब किसानों को जमीन देने के लिए ठोस रूप से कार्यवाही करे। मुख्यमंत्री ने प्रदेश के लाखो परिवारों की रोजी रोटी से जुड़ी इस समस्या को समझते हुए उचित कार्यवाही करने के लिए कानूनी रूप से जो भी सम्भव हो सकेगा वो कदम उठाने का आश्वासन दिया तथा राजस्व तथा कानून मंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन करने का भी आश्वासन दिया है। ताकि प्रदेश में कब्जों के नियमितिकरण के लिए ठोस नीति का निर्धारण किया जा सके।