लोक कला समारोह:लोक संस्कृति पर प्रचार-प्रसार प्रशिक्षण, अध्ययन, अनुसंधान  पर एक दिवसीय सम्मेलन

शिमला:ब्यूरो 23 दिसम्बर
सीएनबीन्यूज़4हिमाचल:-    लोक विरासत शिरगुल देव परंपराएं और लोक त्योहार परियोजना के अन्तर्गत चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों की कड़ी में हिमालयन संस्कृति विकास एवं शोध संस्थान शिमला द्वारा लोक संस्कृति पर प्रचार-प्रसार प्रशिक्षण, अध्ययन, अनुसंधान  पर एक दिवसीय सम्मेलन का आयोजन कालीबाड़ी हाल शिमला में किया गया । इस लोक कला समारोह में खुशी राम बहलनाटा, चेयरमैन हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की । संस्था के अध्यक्ष गोपाल दिलैक ने बताया कि शिरगुल देव शिमला और सिरमौर जिला के साथ-साथ उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बाबर में अधिकतर भागों के अधिष्ठाता देवता के रूप में पूजे जाते हैं । संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रदत्त वित्तीय सहायतानुदान के सहयोग से संस्थान शिरगुल देव परंपराओं और लोक त्योहारों को जीवित रखने के लिए चरणबद्ध तरीके से प्रचार-प्रसार, अध्ययन, अनुसंधान और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को निष्पादित करवा रहा है
लोक संस्कृति के प्रचार-प्रसार के आशय से मंचीय प्रस्तुति के अंतर्गत एकल लोक गीतों और माला नृत्य, दीपक नृत्य आदि का मंचन किया गया । लोक संस्कृति को युवा पीढ़ी तक संप्रेषित करने के लिए महाविद्यालय से आए युवकों को लोक कला का प्रशिक्षण दे कर लोक नृत्य का मंचीय प्रदर्शन भी करवाया गया।
कालीबाड़ी हाॅल शिमला में आयोजित करवाए गए एक दिवसीय सम्मेलन में विभिन्न विधाओं के लोक विशेषज्ञों, लोक साहित्यकारों, लोक अनुसंधित्सुओं, लोक विद्वानों और लोक कलाकारों ने भाग लिया। अध्ययन और अनुसंधान सत्र के दौरान मुख्य अतिथि ने अपने उद्बोधन में कहा कि लोक संस्कृति इतनी समृद्ध है कि एक-एक लोक गीत में इतिहास के अनगिनत सोपान छीपे है । उन्होंने लोक संस्कृति के डाक्यूमेंटेशन पर बल देते हुए कहा कि इसके संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए ऐसे कार्यक्रमों को आयोजित किया जाना चाहिए जिससे कि लोक संस्कृति का प्रचार-प्रसार हो सके और नव पीढ़ी का ध्यान आकृष्ट किया जा सके।

डाॅ राधा रमण शास्त्री ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि लोक संस्कृति का अनमोल खजाना गांव-गांव में रह रहे ऐसे लोक कलाकारों के पास है जिन्हें लोक कवि होने का गौरव हासिल है । उनके लोक गीतों में उस क्षेत्र की देव और लोक संस्कृति को एक लड़ी भव्य ढंग से पिरोया गया है।
परिसंवाद में भाग लेते हुए भागमल नांटा (से०नि० आई०ए०एस०अधिकारी) अध्यक्ष चूड़ेश्वर सेवा समिति ने कहा कि शिरगुल देव परंपराएं

और लोक त्योहार हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है । इसे संजोए रखना हम सभी का सांझा दायित्व है । आकाशवाणी शिमला से आए लोक साहित्यकार डॉ हुकम शर्मा ने कहा कि देव परंपराओं में हिमालय जनपदों में शैव समुदाय का गहरा प्रभाव रहा है। शिरगुल देव, बिजली महादेव, श्रीखंड महादेव आदि इसी परंपरा के अंग हैं।

शिरगुल देव के साथ भंगायणी देवी और जाहरपीर गोगाजी के संबंधों पर भी विवेचन किया गया। युवा लोक साहित्यकार नरेश दास्टा ने शिरगुल महीमा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि देव संस्कृति में सांचा विद्या का अक्षुण्ण स्थान है । लोक विरासत को शिद्दत के आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। ग्रामीण परिवेश में पल्लवित लोक विरासत शिरगुल देव परंपराओं, लोक मान्यताओं और लोक त्योहारों के साथ-साथ लोक कला पक्ष में शिरगुल देव की चार पहर पूजा प्रबाद, पूजेल, सदीवा और नब्द का लोक विशेषज्ञों ने सांगोपांग विवेचन किया । शणांली, हरियाली, दिवाली आदि शिरगुल देव परंपरा से जुड़े त्योहारों पर विस्तृत संवाद हुआ । शिरगुल लोक सभासदों पर अनुसंधान के दौरान यह साबित करने पर बल दिया गया कि दिल्ली से भगवती भंगायन का शिरगुल देव के साथ किन परिस्थितियों में मेल मिलाप हुआ । जाहरपीर गोगाजी महाराज बागड़ राजस्थान ने शिरगुल देव के साथ कैसे कनेक्ट किया । डोम देवता और शिरगुल देव के मध्य तादात्म्य स्थापित करवाने वाले हालात पर गहन अध्ययन किया गया। जिसमें अन्य लोक विद भीम सिंह, प्रवेश निहालटा, कुशाल, रोहित, दीपक शर्मा, प्रीतिपाल शर्मा, रोशनी शर्मा, जय प्रकाश, मुनीश, कमलेश्वर, अरविंद आदि ने भाग लिया।

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