
चौपाल की बिजली बर्दाश्त से बाहर लोगों में नाराजगी का माहौल।
डीडी जंसटा
3-11-2020
नेरवा:-चौपाल की बिजली आजकल मदारी की नौटंकी बन चुकी है क्योंकि जिस तरीके से मदारी कुछ देर के लिए मनोरंजन करता है और उसके बाद प्रायलोप हो जाता है

ऐसा ही हाल आज कल चौपाल की बिजली व्यवस्था का है। आए दिन बिजली गुल होने (ब्लैकआउट )से स्थानीय लोग परेशान हैं। बिजली ना होने के चलते स्थानीय लोगों द्वारा कई बार अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन अधिकारियों ने फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा लेकिन जब फोन उठाया तो यह कहा जाता है की मेन फेल है जिसकी वजह से विद्युत आपूर्ति बहाल नहीं हो सकती है।

जिसे लेकर स्थानीय लोगों में खासी नाराजगी देखने को मिली आए दिन बिजली युही की लुका छुपी का खेल खेल रही है। बताते चलें बिजली बोर्ड की हालत दिन प्रतिदिन खस्ता होती जा रही है। सरकार गांव में 24 से 18 घंटे बिजली देने का दावा करती है मगर यह बातें दूर के ढोल सुहावने साबित हो रही है। जर्जर तार, लो वोल्टेज और पुराने संसाधनों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की आंख मिचौली खत्म नहीं हो रही है। जिसके चलते स्थानीय व्यवसाय व ग्रामीण खासे परेशान चल रहे हैं तथा बिजली विभाग व सरकार के खिलाफ अंदर ही अंदर स्थानीय लोगों में चिंगारी सुलग रही है जो कभी भी लावा बनकर फूट सकती है।स्थानीय लोगो व्यापार मंडल व प्रधान का कहना है कि यदि जल्द से जल्द ही इस समस्या के निराकरण के संदर्भ में कोई कदम नहीं
उठाए गए पंचायत स्तर पर लोगों को इकट्ठा कर वर्ष 2016 में बिजली विभाग के खिलाफ जिस तरीके से प्रदर्शन किया गया था उसी तरीके से मोर्चाबंदी की जाएगी। उधर बिजली विभाग में अपना पक्ष रखते हुए बताया है कि विभाग के पास मैन फोर्स की कमी के चलते व बिजली उपकरण में उपयोग होने वाले कलपुर्जों के ना होने से इस तरह की समस्या बार-बार उत्पन्न हो रही है। विद्युत विभाग में कई श्रेणियों के पद रिक्त हैं -इनमे क्लर्क, टीमेट, चपरासी,
चौकीदार, लाइनमैन, एल एल एम,जेई शामिल है ।इन पदों के रिक्त होने के कारण कार्यरत कर्मचारियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है ।जिसके चलते कार्य ठीक तरीके न होने के कारण विद्युत बार-बार बाधित होती है क्योंकि कार्य के लिए मैनफोर्स का होना अति आवश्यक है।
हालांकि स्थानीय लोगों का यह भी मानना है कि कमजोर नेतृत्व के चलते बिजली व्यवस्था की हालत आए दिन बद से बदतर हो चली है। कई बार 66केवीए का मुद्दा उठाया गया है लेकिन यह सिर्फ चुनावी शगूफे ही साबित हुए हैं। ऐसे में लाचार बेबस जनता आखिर करे तो करे क्या- सरकार मस्त -विभाग तरसत- आम जनता अनदेखी के चलते पस्त।—————-////////————-

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